यायावर में कोई आत्मावसाद नही है। भीतर उमडे हुए करुण भाव को अपने ही पर ढलकर वाह कारुन्य का अप्व्यय नही करेगा...केवल गहरा स्पन्दन्शील अकेलापन, जिसमे संवेदना की अतिरिक्त सजगता है, मन मानो जड़ है । देखना है, सुनना है, घ्रान है, स्पर्श है- सभी कुछ है, किन्तु नही है चिन्तन वहाँ सतह पर आ गया है और भीतर केवल सन्नाटा है।
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