एक आग का दरिया बहा
लकीरें खिंच गए मादरे-वतन पे
उजाड़ ले गए आंधी एक गाँव को
वीरान सा पड़ा,धड़कता रह दिल.
बँट गया कारवां,वक़्त के मार से
मातम मनानें के लिए आंसू भी ना निकले
अब तो यादें धुन्धुलाते हुए आती हैं..
एक मुस्कराहट देखे ज़माना हो गया !!
This poem is dedicated to Qurat-ul-Ain Haider .